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माँ(लेखनी कहानी -14-Jun-2022)

यह रचना मेरी दिवंगत
माताजी को सादर समर्पित
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            ॥ मां ॥
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मां तू चली गई कहाँ
छोड़कर बियाबाँ जग मग में।
चल पाऊंगा कैसे मां
कांटें भरे है  पग पग में।

जो तू थी साथ मेरे
मुझको कोई गम न था।
जाने से तेरे पहले कभी
आंखें कभी नम न था।
याद तुझे करके रोता
बहते लहू मेरी रग रग में।
चल पाऊंगा कैसे मां
कांटें भरे है  पग पग में।

भुखी रहकर हमें खिलाई
सुलाती हमें खुद जगती थी।
हम जो हंसते तू हंस लेती
जख्मों पर मरहम भरती थी।
छिपाने धूप से हमको मां
छांव बन चली मग मग में
चल पाऊंगा कैसे मां
कांटें भरे है  पग पग में।

बाधाएं कितनी भी आई
बनी ढाल तू खड़ी रही।
रक्षा करने हमारी खातिर
बन तलवार तू अड़ी रही।
गाथा तेरी अमर है मां
याद रहेगी हर युग युग में।
चल पाऊंगा कैसे मां
कांटें भरे है  पग पग में।

जाने से तेरे थम सा गया
बचपन मेरा हंसता पूरा।
मां जो रहती पास मेरे
रहता न जीवन मेरा अधूरा
रहेगा आशीष साथ मां का
हीरा सा चमकूंगा नग नग में।
चल पाऊंगा कैसे मां
कांटें भरे है  पग पग में।

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   I Miss you "MATAJI"
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मां का लाडला- 
तोषण कुमार चुरेन्द्र
धनगांव डौंडीलोहारा, 
बालोद छत्तीसगढ़

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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

17-Jun-2022 05:01 PM

बेहतरीन

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Swati chourasia

14-Jun-2022 03:37 PM

Very beautiful and heart touching 👌😞

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Shrishti pandey

14-Jun-2022 12:45 PM

Nice

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